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कविता

एक दिन

महेश वर्मा


पार उतरने से पहले,
छू कर नदी का जल, मैं किसे याद करूँगा?
थोड़ी देर को रुक जाएगा दिशाओं में हवा का गान,
किसी सूर्य और आकाश को नहीं,
देखता हुआ कोई निरर्थक घास -
कुछ देर ऐसे ही बैठा रहूँगा।
एक दिन मैं भी इसी तट आऊँगा पूर्वजों
तुमसे ही पूछूँगा इस नदी को पार करने का मार्ग
पुण्य से या शोक से,
ज़िद से या शौर्य से,
पाप से या कविता से,
कैसे तुम पार उतरे पितरों?
अधूरे शब्दों से बनाकर टूटी नाव,
गर्म धूल आँखों में भरे,
युद्ध क्षेत्र से बचाकर अपना खोखला सीना
एक दिन मैं भी इस तट आऊँगा पूर्वजों।
पार करूँगा यह नदी।


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